Sunday 5 October 2014

छत्तीसगढ़: सरकार ने भेजा कीड़े लगा ...




छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जगरगुंडा क्षेत्र में लोगों के लिए पहुंचा सरकारी अनाज सड़ा हुआ निकला। प्रशासन की कड़ी मशक्कत से काफी समय बाद इस क्षेत्र में सरकारी मदद पहुंच पाई थी लेकिन जब राशन खोला गया तो उसमें कीड़े लगे थे। आदिवासियों के राशन से हुई ऐसी लापरवाही पर प्रशासन सफाई देने में जुटा है।


बोरियों में भरा ये सड़ा अनाज लोगों के खाने के लिए ही भेजा गया है। कीड़े लगे हुए इस अनाज को सरकार ने लोगों के निवाले के लिए भेजा था। ये इलाका इतना दुर्गम है कि यहां राशन भेजना सरकार के लिए एक चुनौती था। सरकार ने राशन तो भेज दिया लेकिन जब उसे खोला गया तो लोगों के चेहरे ये सवाल साफ दिख रहा था कि उनके साथ ये कैसा सलूक किया गया है। इस सरकारी मदद पर सरकार के नुमाइंदे अपना पल्लू झाड़ते हुए दिखाई दिए.


सरकार ने ये अनाज इस इलाके में रहने वाले करीब 4 हजार ग्रामीणों के लिए भेजा है। प्रशासन ने तो ये भी कहा कि ये अनाज अगले 6 महिनों के लिए भेजा जा रहा है। लेकिन क्या ऐसे राशन के 6 निवाले भी लोगों के खाने लायक हैं? कीड़े लगे इस अनाज को भेजने में सरकार 1500 जवानों की मेहनत और 27 घंटे का समय लिया। इतनी मेहनत करने से पहले क्या अनाज की गुणवत्ता को जांचना मुनासिब नहीं था?


सड़े हुआ ये अनाज अब किसी काम का नहीं हैं। सवाल ये है कि प्रशासन अब इस इलाके के लोगों के लिए अच्छे अनाज का इंतजाम कब तक करेगा। कब लोगों को उनके हिस्से का निवाला मिल पाएगा? और क्या ऐसी लापरवाही पर कोई कदम उठाया जाएगा?


गांव के गरीब आदिवासी ग्रामीणों के लिए महिनों बाद जब प्रशासन की कड़ी मशक्कत के बाद राशन पहुंचा तो ग्रामीणों के चेहरे खिल उठे। लेकिन कुछ देर बाद ट्रकों से जब राशन को उतरा गया तो नाजरा कुछ और ही था। विगत कई महिनों से दाने-दाने के मोहताज और अब खाने-पीने का सामान पहुंचा तो सड़ा हुआ और-तो-और कीड़े लगे हुऐ अनाज मिला। दोरनापाल से जगरगुंड़ा की दूरी 50 किमी है, इस दुर्गम मार्ग पर राशन लेकर पहुंचने के लिए 27 घंटे लगे, 1500 पुलिस जवानों ने जान की बाजी लगाकर राशन को पूरी तरह से सुरक्षित पहुंचाया इस पूरी मुहिम में 27 ट्रकों का इस्तेमाल किया गया। लेकिन जब जगरगुंड़ा पहुंचने के बाद राशन के बोरियों को खोला गया तो सब मेहनत पर पानी फिर गया, आलू, प्याज व अन्य अनाज सड़ा हुआ मिला।


अब सवाल उठता है कि क्या ये बेचारे आदिवासी ग्रामीणों को यह भूख से मरने से बचाने की कवायद है या फिर सड़ा राशन खिलाकर मारने की साजिश है। प्रशासन ने तो दावा किया था कि यह राशन करीब 6 महिनों के लिए भेजा जा रहा है। बड़ा सवाल यही है कि घोर नक्सल प्रभावित इलाके में रह रहे इन 4 हजार ग्रामीणों के लिए ऐसी खराब राशन की खरीददारी किसने की? ट्रकों में लोड करने और इसे भेजने के पहले राशन सामान को जांचा क्यूं नही गया? और क्या अब इसके लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान कर कोई कार्यवाही होगी।


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