Saturday 16 August 2014

समीक्षा: खतरनाक संदेश देती है ...




मुंबई। बॉलीवुड अभिनेता अजय देवगन की फिल्म ‘सिंघम रिटर्न्स’ स्वतत्रंता दिवस पर रिलीज हुई। रोहित सेट्टी की नई फिल्म में एक भी पल शांति का नही है। फिल्म लगातार एक्शन, भारी-भरकम डायलॉगबाजी और कान फाड़ देने वाले बैकग्राउंड साउंड से भरी हुई है। फिर भी इस फिल्म में पूरे शोर शाराबे के बीच छिपा है सिस्टम से भ्रष्टाचार को हटाने का एक अच्छा मैसेज जो कहीं-कहीं भटकता हुआ जरूर लगता है।


अजय देवगन फिर एक बार बाजीराव सिंघम के किरदार में लौटे हैं, एक ईमानदार और न्याय की लड़ाई लड़ने वाला पुलिस ऑफिसर जो अब गोवा महाराष्ट्र के बॉर्डर के एक गांव से प्रमोट होकर मुंबई शहर का डिप्टी कमिश्नर बन चुका है। हमारा निडर और साहसी हीरो दुश्मनी मोल ले लेता है एक कपटी बाबा यानी अमोल गुप्ते और एक चालाक नेता यानी जाकिर हुसैन से, जब उसे पता चलता है की इन लोगों की वजह से उसके एक ऑफिसर को शर्मिंदगी भरी मौत मरना पड़ा और एक नेक-दिल गुरुजी यानी अनुपम खेर की हत्या के पीछे इन्हीं का हाथ है।


स्क्रिप्ट के लिहाज से फिल्म में कुछ खास नहीं है, पर सेट्टी और देवगन मिलकर एक ऐसा हीरो तैयार करते हैं, जिसका आप साथ देना चाहेंगे। सिंघम, करप्शन और बेईमानी के सख्त खिलाफ है। फिल्म के एक शुरुआत स्कैन में जब एक लड़का उसे रिश्वत देने की कोशिश करता है तो वो उसे एक जोरदार थप्पड़ मारता है और कहता है कि मैं लेता नहीं, देता हूं।


शेट्टी अपने नायर और फिल्म के मुद्दे को असल दुनिया में बसाते हैं। वो राजनेताओं और सिस्टम की तरफ लोगों की निराशा को मुद्दा बनाते हुए आम आदमी के गुस्से को बहुत ही सहजता से दिखाते हैं। यहां तक तो सब ठीक है, पर यहां परेशान करने वाली बात है फिल्म का मैसेज की चीजों को सुधारने के लिए कानून को अपने हाथ में लेना जरूरी है।


ये एक खतरनाक मैसेज है, और शेट्टी इन दृश्यों को ऐसे पेश करते हैं की लोग उसे पर ताली बाजाएंगे। ये और ज्यादा खतरनाक है। जो मैंने ‘सिंघम रिटर्न्स ’ में खासतौर पर इंजॉय किया वो थे कुछ क्लेवर मूमेंट और अनएक्सपैक्टेड ह्यूमर। दो बार हमारे हीरो की उम्र पर उसकी गर्लफ्रेंड और उसकी टीम का एक ऑफिसर मजाक उड़ाते हैं।


एक और दृश्य में ढोंगी बाबा गुप्ते, भागवत गीता की लाइंस सुनाता है, जिसके जवाब में सिंघम इंडियन पैनल कोड के मायने बताता है। पर ऐसे मूमेंट्स कुछ ही हैं जो इस सीक्वल में बहुत देर-देर में आते हैं। अफसोस ये फिल्म खुद को बहुत ज्यादा सीरियसली लेती है, और उस फिल्म-मेकिंग एथिक को मानती है बड़ा ज्यादा बेहतर होता है। तो यहां और ज्यादा कारें उड़ते हैं, और ज्यादा बड़े धमाके होते हैं, और सी-लिंक पर शानदार एरिअल शॉट के साथ बड़े-बड़े एक्शन दृश्यों को फिल्माया गया है। सिंघम और उसके दुश्मनों के बीच के होने वाली बहस को कुछ 'punchy' वन-लाइनर से भरा गया है, और हमारा हीरो करीब आधा-दर्जन बार अपने सिग्नेचर डायलॉग बोलता है आता मांझी सटकली।


फिल्म में सिंघम के लव इंटरेस्ट के तौर करीना कपूर भी हैं, जो फ्रैंकली, इस फिल्म कहानी के बीच में कोई खास अहमियत नहीं रखती। फिल्म में उनकी कोई खास जरूरत महसूस नहीं होती।


जैसे-जैसे फिल्म का प्लॉट कमजोर पड़ने लगता है, वो अकेले अजय देवगन ही हैं जो इस फिल्म को पुरी तरह बिखरने से बचाते हैं। वो एक नरमदिल पर सख्त पुलिस-ऑफिसर के किरदार में शानदार लगते हैं और वो इस किरदार को बखूबी निभाते हैं। आखिर 2 घंटे 22 मिनट की ‘सिंघम रिटर्न्स’ बहुत ही लंबी और धीमी लगती है। फिल्म में कुछ दृश्यों में जो पुलिस में गर्व महसूस करवाएंगे, पर इसकी प्रेडिक्टेबल स्टोरी आपको थका देगा। मैं ‘सिंघम रिटर्न्स’ को पांच स्टार में से ढाई स्टार देता है।


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