भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने भले ही आज एक मजबूत मुकाम हासिल कर लिया हो, लेकिन जब डेढ़ दशक पहले तस्वीर कुछ और ही थी। जब उन्हें केंद्रीय संगठन की ओर से मध्यप्रदेश के प्रभारी महासचिव बनाकर इस राज्य में पार्टी की सरकार बनवाने के लिए भेजा गया तब उनका यहां के दिग्गज नेताओं ने अघोषित बॉयकॉट किया था।
यह खुलासा जल्द ही प्रकाशित होने जा रही पुस्तक ‘राजनीतिनामा मध्यप्रदेश, राजनेताओं के किस्से’ में किया गया है। पुस्तक में बताया गया है कि बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष और पितृपुरूष माने जाने वाले कुशाभाऊ ठाकरे ने 1998 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव नरेंद्र मोदी को मध्य प्रदेश का प्रभारी बनाकर भेजा। इस खबर से कार्यकर्ताओं में जोश भर गया, लेकिन ठाकरे से ही जुड़े वरिष्ठ नेता सुंदरलाल पटवा और कद्दावर नेता कृष्णमुरारी मोघे को यह ज्यादा पसंद नहीं आया।
इस पुस्तक में मध्य प्रदेश के गठन 1956 के बाद से साल 2003 तक की प्रमुख राजनीतिक घटनाओं को ऐतिहासिक तथ्यों के साथ रोचक ढंग से समेटने वाले वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक दीपक तिवारी ने कहा कि मोदी को उस समय प्रदेश में भेजने के निर्णय को नापसंद करने वालों का तर्क था कि साल 1998 के विधानसभा चुनाव में वैसे ही बीजेपी की जीत तय है तो फिर उन्हें इस राज्य में भेजने की क्या जरूरत है।
किताब में इस घटना का जिक्र करते हुए बताया गया है कि इन नेताओं ने ठाकरे से शिकायत की थी जब मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार तो बन ही रही है तो फिर मोदी के सिर जीत का सेहरा क्यों बांधना। पटवा का तर्क था कि बाहर का आदमी मध्यप्रदेश में आकर क्या कर सकता है।
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