Wednesday 8 October 2014

पढ़ें: हरियाणा में किस पार्टी का दिख ...




डीपी सतीश


नई दिल्ली। हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी जीत के पक्के विश्वास के साथ मैदान में उतरी थी लेकिन जमीनी रिपोर्टों में कड़े संघर्ष की खबरें आने से उसकी चिंताएं बढ़ गई हैं। हरियाणा जनहित कांग्रेस से गठबंधन तोड़ बीजेपी अकेले अपने दम पर मिशन 45 का लक्ष्य लेकर 90 विधानसभा सीटों पर होने वाले इस मुकाबले में उतरी है।


लोकसभा चुनावों में बीजेपी 52 विधानसभा सीटों पर आगे थी लेकिन लोकसभा का मामला अलग था क्योंकि पार्टी के ज्यादातर कैंडीडेट मोदी लहर के चलते जीते। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक राज्य में पिछले चार महीने में जमीनी स्थिति काफी बदल चुकी है और अब बीजेपी राज्य में लोकसभआ चुनाव जैसी मजबूत ताकत नहीं रही है।


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चुनाव में स्थानीय मुद्दे हावी हैं और बीजेपी के पास कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा, आईएनएलडी के चौटाला और हरियाणा जनहित कांग्रेस के कुलदीप बिश्नोई की टक्कर का कोई नेता राज्य में नहीं है। हरियाणा जनहित कांग्रेस कम से कम तीन जिलों हिसार, सिरसा और करनाल में बीजेपी के वोट खा सकती है। अगर बीजेपी हरियाणा जनहित कांग्रेस के कुछ वोट काटती है तो इससे अंतिम फायदा आईएनएलडी या सत्तारूढ़ कांग्रेस को ही हो सकती है।


पड़ोसी राज्य पंजाब में बीजेपी की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल हरियाणा में आईएनएलडी को सपोर्ट कर रही है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री हुड्डा को भरोसा है कि हरियाणा के लिए अलग गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी बनाने के उनके दांव से सिख वोट उन्हें ही मिलेंगे। हरियाणा में डेरा सच्चा सौदा का अच्छा खासा प्रभाव है लेकिन उसने इस बार किसी भी राजनीतिक दल को सपोर्ट न करने का फैसला किया है।


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बीजेपी में मुख्यमंत्री बनने की चाह रखने वालों की लंबी लिस्ट है। विदेशमंत्री सुषमा स्वराज की छोटी बहन वंदना शर्मा सफीदों से लड़ रही हैं और सीएम पद के दावेदारों में से एक हैं। उनके अतिरिक्त बीजेपी के युवा नेता रोहतक के कैप्टन अभिमन्यु, जो कि नारनौंद से लड़ रहे हैं, भी मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में हैं। पार्टी में मुख्यमंत्री पद के तकरीबन आधा दर्जन दावेदार हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य में अपनी पार्टी के लिए जबर्दस्त प्रचार अभियान में जुटे हैं। फरीदाबाद में उनकी सभा में ज्यादा भीड़ नहीं उमड़ी लेकिन कई जगह ये अच्छी खासी थी।


कांग्रेस


शुरुआती झटकों के बाद लगता है कि कांग्रेस ने निर्णय लिया है कि वो बीजेपी और आईएनएलडी को राज्य में कड़ी टक्कर देगी। मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपनी दस साल की उपलब्धियों के दम पर राज्य भर में पार्टी के लिए जबर्दस्त प्रचार अभियान में जुटे हैं। वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसा कमजोर पीएम करार देकर उनपर हमले कर रहे हैं जो केवल लोगों को मूर्ख बनाना अच्छे से जानते हैं। दूसरी ओर पीएम मोदी हुड्डा पर सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के हरियाणा में जमीन सौदों के मुद्दे पर हमला कर रहे हैं।


कांग्रेस भले ही एकजुट न हो लेकिन वो सत्ता में वापसी के लिए पूरा जोर लगा रही है। पार्टी के कुछ आंतरिक सूत्रों के मुताबिक हरियाणा जनहित कांग्रेस के कुलदीप बिश्नोई की कांग्रेस से डील हो चुकी है और वो 25-30 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस विरोधी और बीजेपी समर्थक वोटों का विभाजन कर हुड्डा की मदद कर सकते हैं। सोनिया गांधी भी हरियाणा में प्रचार कर चुकी हैं और राहुल गांधी के इसी हफ्ते प्रचार के लिए पहुंचने की उम्मीद है।


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आईएनएलडी


जमानत पर छूटे ओमप्रकाश चौटाला अपनी जमानत की शर्तों का उल्लंघन करते हुए चुनाव प्रचार में जुटे हैं। वो वोटरों से यहां तक कह रहे हैं कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वो मुख्यमंत्री पद की शपथ जेल में लेंगे। उनके बेटे अभय चौटाला और बहू नैना सिंह चौटाला भी चुनाव मैदान में हैं। चौटाला सहानुभूति का कार्ड खेल रहे हैं और अपनी जेल के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।


शिरोमणि अकाली दल के समर्थन से भी आईएनएलडी को मदद मिल रही है। स्थानीय राजनीतिक जानकारों को लगता है कि चौटाला आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की तरह सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रहे हैं, जो दस साल के राजनीतिक वनवास के बाद सत्ता में लौटे हैं।


हरियाणा जनहित कांग्रेस


भजनलाल के पुत्र व पूर्व सांसद कुलदीप बिश्नोई के नेतृत्व वाली हरियाणा जनहित कांग्रेस अकेले अपने दम पर सत्ता में आने की दौड़ में शामिल नहीं है। बिश्नोई भी अपनी सब-रीजनल पार्टी की कमजोरियों से वाकिफ हैं, लेकिन वो किंगमेकर बनना चाहते हैं। वो उम्मीद कर रहे हैं कि हरियाणा के मतदाता खंडित जनादेश देंगे जो उन्हें किंगमेकर बनाएगा। उनके करीबी लोगों का कहना है कि वो प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बनना चाहते हैं और त्रिशंकु विधानसभा होने की स्थिति में बीजेपी और कांग्रेस किसी के साथ भी जाने के लिए तैयार हैं।


इसके अलावा गोपाल कांडा और विनोद शर्मा की पार्टियां भी हरियाणा में कुछ हिस्सों में कांग्रेस विरोधी वोटों का बंटवारा कर सकती हैं। यानी इस बार चुनाव में गणित कुछ ऐसा है कि राजनीतिक पंडित कोई भविष्यवाणी करने से बच रहे हैं। यहां तक कि सट्टेबाज भी हरियाणा और महाराष्ट्र चुनावों को लेकर कोई सट्टा नहीं लगा रहे। इससे साफ है कि दोनों राज्यों के विधानसभा चुनावों में मतदाताओं के बीच खासी भ्रम की स्थिति है।


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