Monday 6 October 2014

पंकजा की लीडरशिप पर मोदी की भी मुहर!




संजीव उन्हाले


औरंगाबाद। एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र के बीड में जबर्दस्त रैली के बाद पंकजा मुंडे से राज्यस्तर पर प्रचार अभियान का बीड़ा उठाने को कहा जिससे संकेत मिलता है कि वो भविष्य में राज्य की कमान संभाल सकती हैं।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिवंगत नेता गोपीनाथ मुंडे को श्रद्धांजलि देने के लिए महाराष्ट्र के बीड से अपनी चुनावी रैलियों की शुरुआत की। मोदी ने मुंडे की पुत्री पंकजा की इतना विशाल जनसमूह जुटाने के लिए तारीफ की। पीएम की रैली से एक दिन पहले, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने घोषणा की कि पंकजा सूबे में ओबीसी की नेता होंगी। गौरतलब है कि गोपीनाथ मुंडे की अकस्मात मौत के बाद महाराष्ट्र बीजेपी में नेतृत्व को लेकर एक खालीपन हो गया था। गोपीनाथ मुंडे का महाराष्ट्र में मजबूत आधार था। जहां तक मराठवाड़ा की बात है तो मुंडे की मौत से यहां बीजेपी को गहरा झटका लगा है।


हालांकि, बीजेपी में प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र फड़नवीस, सूबे में विपक्ष के नेता एकनाथ खड़से और विनोद तावड़े जैसे नेता हैं, लेकिन उनमें मुंडे जैसी नेतृत्व क्षमता और करिश्माई व्यक्तित्व की कमी है। दूसरी तरफ पंकजा मुंडे के नेतृत्व में सूबे में चली ‘संघर्ष यात्रा’ से बीजेपी को काफी अच्छी प्रतिक्रियाएं मिलीं। पकंजा भले ही राजनीति में नई हैं, फिर भी उनमें मंझे हुए राजनीतिज्ञ जैसी खूबियां और वाकपटुता है। कुछ राजनीतिक पंडितों के मुताबिक आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पंकजा का कद बढ़ा सकते हैं।


दूसरी तरफ, शनिवार के अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने साफ संकेत दिए कि वो शिवसेना के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं थे। मोदी राज्य में बिना किसी गठबंधन के बीजेपी को पूर्ण बहुमत की वकालत कर रहे हैं। मोदी का प्रचार अभियान उन लोगों को आकर्षित करता प्रतीत हो रहा है जिनकी पहले से किसी पार्टी के प्रति निष्ठा नहीं है। नए प्रगतिशील भारत का मोदी का विचार और काम करने की उनकी शैली युवाओं के बीच पसंद की जा रही है और बीजेपी के लिए ये वोटों के नजरिये से फायदेमंद साबित हो सकती है।


फिलहाल सूबे में अपनी पकड़ के लिहाज से शिवसेना की तुलना में बीजेपी पिछड़ी हुई लगती है और अगर इससे बावजूद बीजेपी को यहां जीत मिलती है तो ये सिर्फ मोदी फैक्टर के चलते होगा। दूसरी तरफ कांग्रेस में कोई ऐसा प्रभावशाली वक्ता नहीं दिखता है जो बीजेपी के उभरते हुए युवा नेतृत्व को चुनाव प्रचार में टक्कर दे सके और वोटरों को अपनी ओर आकर्षित कर सके।


(संजीव उन्हाले, मराठी अखबार लोकमत, औरंगाबाद के एक्जीक्यूटिव एडिटर रहे हैं)


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