Thursday 9 October 2014

मराठवाड़ा: BJP मजबूत, चव्हाण-देशमुख को ...




संजीव उन्हाले


औरंगाबाद। मराठवाड़ा के 46 चुनावी क्षेत्र में कांग्रेस-एनसीपी, बीजेपी और शिवसेना के बीच बहुकोणिय चुनावी संघर्ष देखने को मिल रहा है। माना जा रहा हैकि प्रधानमंत्री के हालिया दौरे और स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा पल्वे मुंडे को सूबे का भविष्य का मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने से क्षेत्र में बीजेपी की स्थिति विधानसभा चुनाव में मजबूत हुई है। हालांकि शिवसेना, केसरिया बेल्ट औरंगाबाद, परभनी और ओसमानाबाद जिले में अपनी स्थिति को बरकरार रखने के लिए सभी तरह के प्रयास कर रही है।


यह ध्यान देने योग्य है कि साल 2009 के विधानसभा चुनाव में, कांग्रेस और एनसीपी ने 18 और 13 सीटें क्रमश जीत कर अपनी पकड़ साबित की थी। बीजेपी और शिवसेना को नाकामयाबी हाथ लगी थी और इस क्षेत्र में बीजेपी-शिवसेना मात्र 2 और 7 सीटें ही इस जीत पाई थी।


शिवसेना ने 1988 के औरंगाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन चुनाव बाद ग्रामीण महाराष्ट्र में पारी शुरू की। इससे प्रमोद महाजन, गोपीनाथ मुंडे और बाल ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन आगे बढ़ी। हालांकि, कांग्रेस और एनसीपी वर्तमान चुनाव में सख्त एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर से गुजर रही है, वैसे बीजेपी सफलतापूर्वक ये प्रोजेक्ट कर रही है कि कांग्रेस-एनसीपी के 15 साल के शासन में कोई बड़ा विकास या सकारात्मक बदलाव नहीं हुआ है। मराठवाड़ा की सबसे बड़ी दिक्कत जयाकवाडी डैम से मराठवाड़ा पीने का पानी लाना और क्षेत्रीय असंतुलन, विकास के कई कार्यों में फंड आवंटन में असमानता, सिचाई और रोड के हालात डांवाडोल है। इससे सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है। खासकर, सूबे के शिक्षा मंत्री राजेंद्र डारडा और एनिमल हज्बन्ड्री मिनिस्टर अब्दुल सत्तार, को शिवसेना के गढ़ औरंगाबाद में सख्त प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है।


अगर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन चुनाव लड़ता तो इन नेताओं के लिए कोई स्कोप नहीं होता। अब दोनों नेता औरंगाबाद ईस्ट और सिलोद चुनावी क्षेत्र में वोटों के बंटवारे पर निर्भर हैं। राजेंद्र डारडा, जिनके पास एज है, अतुल सावे जो पूर्व शिवसेना एमपी के बेटे हैं, मोरेश्वर सावे और शिवसेना के उम्मीदवार मेयर कला ओजा,


उनको बीजेपी प्रत्याशी टक्कर दे रहे हैं। डारडा, एमआईएम उम्मीदवार गफार कादरी और एनसीपी उम्मीदवार जुबेर मोतीवाला, कांग्रेस के बागी उम्मीदवार उत्तमसिंह पवार के चुनावी मैदान में होने से अल्पसंख्यक वोट बंटवारे को लेकर खतरा महसूस कर रहे हैं। सभी का एक ही लक्ष्य है मंत्री को हराना। ये सच्चाई है कि राजेंद्र डारडा ने अपने चुनावी क्षेत्र को बढ़िया तरीके से संरक्षित किया है और 15 साल के भीतर हरेक कॉलीनी के सड़कों में बुनियादी ढांचा विकसित की है।


नांदेड से सांसद और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को कड़ी टक्कर मिल रही है। उनकी पत्नी अमिता चव्हाण, चव्हाण परिवार के गढ़ भोखर चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ रही हैं। इससे पहले ये सीट अशोक चव्हाण के पास थी। यधपि, चव्हाण को आम चुनाव में दो संसदीय सीट पर जीत मिली थी। बीजेपी ने उनके गढ़ में डॉक्टर माधव किन्हालकर को अंतिम समय में चुनाव मैदान में उतार कर अपना रास्ता बनाया। उन्होंने आखिरी चुनाव बीजेपी के टिकट पर लड़ी थी और पेड न्यूज को लेकर चव्हाण के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी थी। चव्हाण भी भाष्कर राव पाटिल खटगॉवकर के जैसे आंतरिक दिक्कत से दो चार हो रहे हैं। वो तीन बार नांदेड से सांसद चुने गए थे और चव्हाण वंश से बदला लेने के लिए बीजेपी को जॉइन कर ली। खटगांवकर की जनसाधार में मजबूत पकड़ थी। एनसीपी के पूर्व एमपी सुर्यकांत पाटिल, जिनका पारंपरिक आधार हादगांव और भोखर ब्लॉक में है, ने भी बीजेपी जॉइन कर लिया। ध्यान देने वाली बात ये है कि बीजेपी ने कांग्रेस के गढ़ नांदेड में कांग्रेस को खत्म करने के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को रिछाने की पूरी कोशिश की।


पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के बेटे अमित देशमुख भी अपने पारिवारिक चुनावी गढ़ लातूर में कड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं। स्थानीय राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक अमित का अत्यधिक आत्मविश्वास और उनका निर्वाचक क्षेत्र में खुद को बनाए रखने में असमर्थता चुनौती बन गई है। जो उनके पिता के साथ थी। लोग कांग्रेस नीत म्युनिसिपल कार्पोरेशन के कामों और लातुर नगर में पानी की गंभीर समस्या को एड्रेस करने की अक्षमता के कारण नाखुश हैं। लातुर में पानी की सप्लाई अव्यवस्थित है। कांग्रेस उम्मीदवार को आखिरी संसदीय चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।


इस तरह से एनसीपी के मंत्री जयदत्तत क्षीरसागर बीड में अपने मजूबत नेटवर्क के चलते बहुत ही मजबूत स्थिति में हैं और ओबीसी और अल्पसंख्यक उनके समर्थन में हैं। उनके विरोधी विनायक मेटे, हार्डकोर मराठा नेता शिव संग्राम परिषद, जो बीजेपी के ऐलाइ के रूप में लड़ रहे हैं।


दो चचेरे भाइयों डॉक्टर पमद सिंह पाटिल के बेटे राणा जगजीत सिंह, जो शरद पवार के नजदीकी हैं और शिवसेना के ओमराजे निमबाल्कर के बीच चुनावी लड़ाई बहुत ही दिलचस्प होगी। इसके अलावा, पूर्व मुख्यमंत्री शिवाजी राव पाटिल निलांगेकर परिवार, अशोक पाटिल निलांगेकर और बीजेपी के सम्भाजी पाटिल निलांगकर ने क्षेत्र में असामान्य हालात पैद कर दिए हैं।


प्रशांत बांब जैसे विद्रोही एक निर्दलीय एमएलए जो चुनाव के मौके पर बीजेपी में शामिल हो गए, एक मत्वपूर्ण खिलाड़ी होंगे। क्योंकि बीजेपी-शिवसेना गठबंधन गंगापुर सीट के लिए लड़ी थी, जिसके लिए उद्धव ठाकरे जोर दे रहे थे। इस कदम के लिए उद्धव ने निंदा भी की थी, जिन्होंने कहा था कि आखिरी समय में पार्टी में प्रवेश 25 साल के गठबंधन से ज्यादा प्रिय है। शिवसेना के पुराने रक्षक किशनचंद तनवानी ने आखिरी समय में बीजेपी ज्वॉइन कर लिया और औरंगाबाद दक्षिण से चुनाव लड़ रहे हैं। शिवसेना के प्रदीप जायसवाल और बीजेपी के मिस्टर तनवानी के बीच, दो पुराने रक्षकों के बीच ये करीब की लड़ाई होगी। जहां एमएम शेख, पूर्व एमएलसी अल्पसंख्यक वोट पर निर्भर कर रहे हैं, हिंदू वोट के बंटवारे से उनको फायदा हो सकता है।


(संजीव उन्हाले, मराठी अखबार लोकमत, औरंगाबाद के एक्जीक्यूटिव एडिटर रहे हैं)


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