नई दिल्ली। चीनी राष्ट्रपति के तीन दिनों की भारत यात्रा के दो दिन करीब-करीब बीत चुके हैं। इस दौरान चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग भारत के सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाते दिखे, जबकि लद्दाख में चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों को आंखे दिखा रहे हैं। क्या भारत और चीन के बीच लंबे वक्त से रिश्तों में बनी खाई को चीन के राष्ट्रपति चिनफिंग की ये यात्रा पाट पाएगी। अब यही सबसे बड़ा सवाल है। इसके अलावा अब तक भारत-चीन वार्ता का क्या रहा नतीजा। भारत और चीन ने इस बातचीत से क्या हासिल किया।
ये वार्ता उस मुल्क के साथ थी जो 1962 में हिंदी चीनी भाई भाई के नारे की पीठ में छुरा घोंप चुका है। वो कड़वी यादें, वो जख्म भूल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग साथ बैठे। ये ऐतिहासिक लम्हा था। दोनों मुल्कों के बीच 1962 की जंग के बाद से ही सामान्य रिश्ते कभी नहीं रहे। कमोबेश एक ही वक्त पर साम्राज्यवादी ताकतों की गुलामी से आजादी पाने वाले ये दोनों मुल्क आखिर अपनी सरहद का विवाद कैसे सुलझाएं। कैसे एक दूसरे पर भरोसा करें, विश्वास और सौहार्द के बीच कारोबार बढ़ाएं। मोदी ने चीन से दोटूक कह दिया कि अब वक्त आ गया है जब हम सरहद की एक पक्की लकीर खींचें। लाइन ऑफ कंट्रोल यानि LAC सिर्फ काल्पनिक रेखा न रहे। ताकि हर दूसरे दिन घुसपैठ न हो।
संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में मोदी ने कहा, मैंने सुझाव दिया है कि सीमा पर शांति और स्थिरता के लिए एलएसी को स्पष्ट करना बेहद जरूरी है। ये काम कई सालों से रुका हुआ है और इसकी दोबारा शुरूआत होनी चाहिए।
वहीं चिनफिंग ने कहा, भारत-चीन के सरहद विवाद ऐतिहासिक विवाद है। पिछले कई सालों से ये मुद्दा चर्चा में है। सरहद को डीमार्केट करने की जरूरत है। कई बार वहां मुद्दे उठते हैं। दोनों देश ऐसी घटनाओं का रिश्तों पर असर रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। सरहद विवाद सुलझाने के लिए दोस्ताना पहल करेंगे।
जैसे मोदी के कड़े शब्दों में चीन के राष्ट्रपति के भारत दौरे के दौरान अरुणाचल प्रदेश में चीन की घुसपैठ से उपजी हैरत और नाराजगी का पुट था। वैसे भारत ने कई और मुद्दों पर चीन से अपना ऐतराज दर्ज करवाया। इसमें सीमा विवाद के अलावा, अरुणाचल प्रदेश के नागरिकों को दिए जाने वाले चीन के नत्थी वीजा (स्टेपल वीजा) का मुद्दा भी शामिल था। चीन चूंकि अरुणाचल के एक बड़े हिस्से पर अपना अधिकार जताता है इसीलिए उसके लोगों को नत्थी वीजा जारी करता है, जो खासा अपमानजनक है। इतना ही नहीं मोदी ने चीन से भारत आने वाली नदियों के पानी को लेकर चल रहे विवाद भी चिनफिंग से बातचीत में उठाए। इशारा भारत में हर साल बाढ़ से तबाही मचाने वाली ब्रह्मपुत्र नदी की ओर था।
मोदी और चिनफिंग का जोर भारत और चीन के बीच सालों से मौजूद विवादित मुद्दों को सुलझाने पर था। चीन ने एक अरसे पुरानी भारत की एक बड़ी मांग भी मान ली। उसने कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए एक नए रास्ते की सौगात दी। नाथुला पास से होते हुए ये नया रास्ता भारतीय तीर्थयात्रियों को काफी राहत देगा। ये रास्ता छोटा है, सुरक्षित है और बुजुर्ग यात्री भी कार के जरिए इस रास्ते पर जा सकेंगे।
इतना ही नहीं जापान की तरह चीन ने भी अपनी बुलेट ट्रेन भारत की ओर दौड़ा दी है। बुलेट ट्रेन नाम जापान से जुड़ा है, लिहाजा चीन इसे हाई स्पीड रेल का नाम देता है। चीन की मदद से भारत में चेन्नई से मैसूर वाया बेंगलुरू ये हाई स्पीड ट्रेन चलेगी। भारत में निवेश के लिए अपना खजाना भी खोल दिया। चीन भारत में अगले पांच सालों में 20 अरब डॉलर का निवेश करेगा।
दोनों देशों के बीच कम कारोबार पर मोदी ने चिंता जताई। उम्मीद जताई कि कारोबार का असंतुलन दूर किया जाएगा क्योंकि दोनों ही एशियाई महाशक्तियां हैं। एक दूसरे के साथ कारोबार बढ़ाने से वैश्विक मंच पर दोनों का कद और दावेदारी मजबूत होगी।
चीन महाराष्ट्र और गुजरात में दो इंडस्ट्रियल पार्क बनाने पर भी सहमत हुआ है। इसके अलावा चीन, भारत, म्यांमार और बांग्लादेश के बीच ट्रेड कॉरिडोर बनाने की बात भी की गई। चीन के साथ नागरिक इस्तेमाल की खातिर परमाणु समझौते की कोशिश भी होगी।
हालांकि, भारत चीन के बीच कई मुद्दों पर पहले भी सार्थक बातचीत होती रही है। सो देखना ये होगा कि इस बार सरहद विवाद को सुलझाने के लिए भारत का दबाव किस हद तक रंग लाता है, सिर्फ बातों और इऱादों से आगे बढ़कर क्या वाकई LAC को खींचा जा सकेगा?
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