Monday 9 December 2013

'आप' के उभार से बीजेपी डरी? नहीं दिखा ...




नई दिल्ली। दिल्ली में सरकार कैसे बनेगी फिलहाल सबसे बड़ा सवाल यही है। दिल्ली की जनता ने कांग्रेस को तो नकार दिया है लेकिन बहुमत भी किसी को नहीं दिया। बीजेपी जादुई आंकड़े से 4 कदम दूर रह गई, तो आम आदमी पार्टी को 8 सीटें कम पड़ गईं। आप ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों से ही समर्थन लेने या देने की बात को सिरे से खारिज कर दिया है। तो वहीं आप की शुचिता की राजनीति को मिले जबरदस्त समर्थन से घबराई बीजेपी भी जोड़तोड़ से डर रही है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या होगा दिल्ली में। क्या राष्ट्रपति शासन लगेगा, क्या फिर चुनाव कराने होंगे।


बीजेपी को 32 सीटें मिली हैं, जबकि आप को 28। दिल्ली में बहुमत के लिए चाहिए 36 सीटें। यानि बीजेपी को चार सीटें और आप को 8 सीटें। सवाल ये है कि आखिर अब क्या रास्ता है दोनों पार्टियों के पास। इस सवाल का जवाब लेकर सामने आईं किरण बेदी। एक जमाने में अरविंद केजरीवाल की सहयोगी रहीं किरण बेदी ने सलाह दी कि दिल्ली की जनता ने कांग्रेस को नकारा है। ऐसे में ये आप और बीजेपी की जिम्मेदारी बनती है कि वो दिल्ली की जनता को एक बेहतर सरकार मुहैया कराएं। चुनावों के लिए जल्दबाजी नहीं करना चाहिए। दिल्ली को एक नई प्रकार की सरकार मिलनी चाहिए।


आम आदमी पार्टी ने किरण बेदी की इस सलाह को सिरे से नकार दिया। आम आदमी पार्टी का कहना है कि वो न तो किसी को समर्थन देगी और न ही लेगी। उधर बीजेपी के सीएम पद के उम्मीदवार डॉक्टर हर्षवर्धन का भी कहना है कि उनकी पार्टी जोड़-तोड़ की राजनीति में यकीन नहीं करती है। आप नेता मनीष सिसोदिया ने कहा कि हमारे पास में बहुमत नहीं है हम सरकार नहीं बनाएंगे। कांग्रेस बीजेपी को समर्थन देना या लेना हमारे लिए संभव नहीं है। हम दोबारा चुनाव के लिए तैयार हैं। बात भरोसे की नहीं है, ये परिस्थिति की बात है। दिल्ली की जनता ने किसी को जनादेश नहीं दिया।


बीजेपी नेता हर्षवर्धन ने कहा कि दिल्ली की जनता ने हमें सबसे बड़ी पार्टी बनाया है। लेकिन हमें इतना भी संख्या नहीं दी है कि हम सरकार बना सकें। हम जोड़-तोड़ में विश्वास नहीं रखते। बाकी लोगों के बारे में पता नहीं है। इस बीच मटियामहल से इकलौती सीट जीतने वाली जेडीयू ने आम आदमी पार्टी को बिना शर्त समर्थन की पेशकश की है। जानकारों का कहना है कि दिल्ली में अब भी सरकार बन सकती है लेकिन उसके लिए राजनीतिक दलों को अपना रुख बदलना होगा, और साथ मिलकर आगे बढ़ना होगा। कांग्रेस ने आप को समर्थन देने के साफ संकेत भी दिए हैं लेकिन आम आदमी पार्टी ने साफ कर दिया है कि वो किसी के समर्थन से सरकार नहीं बनाएगी और न ही किसी को सरकार बनाने के लिए समर्थन देगी।


बीजेपी के 32 और एकमात्र निर्दलीय विधायक रामवीर शौकीन और जेडीयू के शोएब इकबाल को जोड़ लें तो आंकड़ा 34 तक ही पहुंचता है। ऐसे में बीजेपी के पास कांग्रेस या आम आदमी पार्टी के विधायकों में सेंध लगाने का ही रास्ता बचता है लेकिन इसकी संभावना दूर-दूर तक नहीं दिख रही। जानकारों के मुताबिक इसके लिए बीजेपी को आप या कांग्रेस के दो तिहाई विधायकों को तोड़ना होगा यानी कांग्रेस के 8 में से 6 या फिर आप के 28 में से 21 विधायक। जाहिर है ये सूरत नामुमकिन ही नजर आ रही है और अगर इससे कम विधायकों की तोड़फोड़ हुई तो दल-बदल कानून बीजेपी की राह का रोड़ा बन सकता है।


बीजेपी और आप दोनों ही सरकार बनाने से इनकार कर दें तो ऐसे में दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लग जाएगा और 6 महीने बाद फिर से विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने भी ऐसे ही संकेत दिए हैं। उनका कहना है कि सत्ता के लिए जोड़-तोड़ की बजाय वो दोबारा चुनाव लड़ना पसंद करेंगे।


उधर सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी ने भी अब सरकार बनाने से इनकार कर दिया है। दरअसल बीजेपी चाह कर भी मौजूदा हालात में सरकार बनाने की कोशिश करती नहीं दिखना चाहती। जोड़तोड़ के खेल में नहीं पड़ना चाहती। वजह है आम आदमी का डर। वो आम आदमी जिसने साफ सुथरी और भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति के लिए सियासी दिग्गजों को दरकिनार कर आम आदमियों को चुना।


बीजेपी को डर है कि अगर उसने जोड़तोड़ की कोई कोशिश की तो उसकी छवि खराब हो सकती है और इसका सीधा असर लोकसभा चुनाव के नतीजों पर पड़ सकता है। अब सबकी निगाहें उपराज्यपाल नजीब जंग पर टिकी हैं। दिल्ली में सरकार बनाने के लिए किसी भी दल को 17 दिसंबर तक अपना दावा पेश करना होगा क्योंकि 18 दिसबंर तक दिल्ली की नई विधानसभा का गठन हो जाना चाहिए। उप राज्यपाल नजीब जंग सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बीजेपी और उसके बाद आम आदमी पार्टी को सरकार बनाने का न्यौता दे सकते हैं। अगर 17 तारीख तक किसी पार्टी की सरकार नहीं बनी तो दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है।


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