Saturday 7 December 2013

कर्नाटक में येदियुरप्पा पर दांव ...




बेंगलुरू। देश में भले ही बीजेपी मोदी लहर पर सवार हो, लेकिन इस दक्षिणी राज्य में यह लहर किनारे पर सिर धुनती नजर आ रही है और माना जा रहा है कि अगले साल 2014 में होने वाले आम चुनाव में स्थानीय स्तर के मजबूत नाविकों की मदद के बगैर पार्टी की नाव किनारे नहीं लग सकती। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी अपने पूर्व नेता बी एस येदियुरप्पा को घर बुलाने के लिए गलीचे बिछाने में जुटी हुई है, हालांकि येदियुरप्पा अभी तक भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त नहीं हो पाए हैं।


पार्टी की प्रदेश इकाई को पूरा भरोसा है कि दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, मिजोरम और छत्तीसगढ़ में चुनाव समाप्त होने के बाद केंद्रीय नेतृत्व अब येदियुरप्पा की वापसी की प्रक्रिया पर गंभीरता से विचार शुरू कर देगा। प्रदेश बीजेपी प्रमुख प्रहलाद जोशी और पार्टी के अधिकांश वरिष्ठ नेता उम्मीद कर रहे हैं कि केंद्रीय नेतृत्व अगले कुछ दिनों में येदियुरप्पा को मुलाकात के लिए दिल्ली बुलाएगा और उनकी कर्नाटक जनता पार्टी (केजेपी) के विलय को अंतिम रूप दिया जाएगा।


येदियुरप्पा मई 2008 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे और जुलाई 2011 में उन्हें खनन ठेके में रिश्वत लेने के आरोपों में पद छोड़ने के लिए विवश किया गया। करीब एक साल पार्टी की प्रदेश इकाई का अध्यक्ष बनाने का इंतजार करने के बाद उन्होंने नवंबर 2012 में बीजेपी को अलविदा कह दिया और खुद की पार्टी खड़ी कर ली। राज्य में 225 सदस्यों वाली विधानसभा के लिए मई 2013 में हुए चुनाव में येदियुरप्पा की पार्टी ने 224 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन उनके छह लोग ही विधानसभा तक पहुंचने में कामयाब हो सके।


कर्नाटक जनता पार्टी हालांकि 10 फीसदी वोट बटोरने में कामयाब रही। इस झटके के कारण ही राज्य में मात्र एक चांस के बाद बीजेपी को कांग्रेस के हाथों शिकस्त खानी पड़ी। येदियुरप्पा यही कहते चले आ रहे हैं कि वे बीजेपी के साथ केवल गठबंधन या सीटों के तालमेल के लिए तैयार हैं न कि अपनी पार्टी के विलय के लिए। ऐसा कहते हुए वे हालांकि इस सच से वाकिफ हैं कि यह प्रस्ताव उनके पुराने घर में पच नहीं पाएगा। इसके अलावा वे यह भी जानते हैं कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में अपने दम पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाएगी।


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