Saturday 4 October 2014

पटना: आखिर कौन है बेशुमार दर्द का ...




नई दिल्ली। रावण दहन के दौरान पटना के गांधी मैदान के पास मौत की भगदड़ में 33 लोगों की जान चली गई। इस भगदड़ की उच्च स्तरीय जांच शुरू कर दी गई है। पहली नजर में इस हादसे के लिए प्रशासनिक लापरवाही को जिम्मेदार बताया जा रहा है। लेकिन हादसे के बाद से अब तक सरकार का जो नजरिया सामने आया है, वो भी कचोटने वाला है। आखिर कौन है बेशुमार दर्द का गुनहगार।


जब गम हदों को पार कर जाता है तो रोने और गाने में फर्क नहीं रह जाता। पटना में गांधी मैदान में रावण दहन के वक्त जब चिंगारी के बाद लपटें उठीं तो अंधेरा और उजाला गले मिलते लगे। लेकिन स्याह रात में उजाला क्षणिक निकला। बिजली के तार गिरे होने से करंट की तरफ अफवाह हवा में तैरी और अफरातफरी की शक्ल में फैल गई। अब कोई अपने कलेजे के टुकड़े को ढूंढ रहा है कोई बेटी को, कोई भाई को तो कोई नाती-पोते को।


यहां एक जिप्सी हादसे की चपेट में आने वालों के जूते-चप्पलों से भरी दिखी। हालांकि मौका-ए-वारदात से मौत के उस मंजर की गवाही अच्छी तरह मिलती है। रात तो अपनों की तलाश, संशय और अंदेशों के बीच कट गई। इस दौरान कभी गुस्सा जोर मारता तो कभी बेबसी। दिन हुआ तो सरकार और प्रशासन का चेहरा साफ-साफ नजर आने लगा।


मुख्यमंत्री के कार्यक्रम के लिए रास्ते पर लगाए गए बैरिकेटिंग हटने लगी और अपनों को खोने से उपजने वाले गुस्से पर पुलिस का डंडा चलने लगा। हद तो तब हो गई जब गुस्से का इजहार करने वालों के सामने पुलिस ने अपना चेहरा दिखाया और पीड़ितों को पुलिस की बदतमीजी, धक्का-मुक्की और हिरासत-गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा।


अंदेशे ने जोर मारा तो खाकी का खौफ खत्म हो गया। हाथ में ईंट उठाकर चल पड़ी मॉर्चरी यानी शवगृह का ताला तोड़ने। हो सकता है कहीं मुर्दों के बीच ही बेटे की झलक मिल जाए। महिला पुलिस ने इसके दर्द को समझा और सख्ती से परहेज किया। इसके बाद लोगों के उबल पड़े गुस्से को थामने के लिए एक पुलिसकर्मी को ही शवगृह के ताले को ईंट की मदद से तोड़ने को मजबूर होना पड़ा।


अब सवाल उठता है कि ये हादसा क्यों हुआ? दशहरा अंधेरे पर उजाले की जीत का उत्सव है। लेकिन जब लाखों लोग रावण दहन के बाद निकले तो आसपास अंधेरा था। यानी बत्ती गुल।


इससे पहले मुख्यमंत्री जीतन राम राम मांझी आए। उनके लिए फूल आए। उनके लिए प्रशासन बिछ गया। कलेक्टर साहब अपनी बेटी के जन्मदिन का केक काटने का वक्त आगे खिसका कर आए। एसपी साहब आए। मंत्री आए। संतरी आए। उन्हें फूल दिए गए। कालीन की तरह अफसर बिछ गए। रावण जल गया। इसके बाद मंत्री जी अपने स्वागत के समारोह में हिस्सा लेने के लिए अपने गांव की तरफ कूच कर गए। इसके लिए गांधी मैदान का एक ही रास्ता खुला। उससे पहले सीएम निकले। फिर दूसरे खास मंत्रीगण। इसके बाद कलेक्टर, एसपी, दारोगा और फिर सिपाही। सब चले गए। सब अपनी जिम्मेदारी भूल गए। कलेक्टर साहब को याद रहा तो बेटी का जन्मदिन।


डीएम मनीष वर्मा ने कहा, सच्चाई ये है कि मेरी बेटी का जन्मदिन था। जैसे ही मेरे को पता चला। मै गांधी मैदान पहुंचा। पूरी रात मैं पीएमसीएच में था। मेरी प्रायरिटी मेरी जॉब है।


सवाल कई खड़े होते हैं। पहला ये कि दशहरे पर आसपास बिजली क्यों नहीं थी? आम लोगों के गांधी मैदान से निकलने के लिए सभी रास्ते क्यों नहीं खोले गए? मुख्यमंत्री के जाने के बाद पुलिस और प्रशासन कहां था?


हादसे की जानकारी मिलते ही मुख्यमंत्री मौके पर क्यों नहीं पहुंचे? मांझी सरकार के मंत्री रातभर क्यों गायब रहे? पीएमसीएच की बदइंतजामी के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या दशहरे की रात बिहार सरकार का दहन हो गया?


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