Monday 8 September 2014

पढ़ें: गणपति बप्पा की अनसुनी कहानियां




नई दिल्ली। महाराष्ट्र और पूरे देश में सोमवार को गणपति विसर्जन की धूम रही। अनंत चतुर्दशी पर गणपति को अंतिम विदाई देने के लिए भारी तादाद में लोग सड़कों पर निकले। महाराष्ट्र में गणेश उत्सव एक सामाजिक त्यौहार में बदल चुका है।


देश के दूसरे हिस्सों में भी गणेश उत्सव अब महाराष्ट्र की तर्ज पर ही बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। गणेश जी विघ्नहर्ता माने जाते हैं, किसी भी पूजा से पहले गणेश जी की पूजा करने की परंपरा है। गणपति से जुड़ी ऐसी ही परंपराओं, मान्यताओं की कहानी को लेकर पेश है, बप्पा की अनसुनी कहानियां।


एक वक्त था जब भाद्र पद चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक चलने वाले गणेश उत्सव में बड़े-बड़े पंडालों में ही गणपति की भव्य मूर्तियां दिखती थीं। लेकिन अब गणेश की जी की मूर्ति घरों में भी स्थापित करने का चलन बढ़ गया है। जानते हैं कि गणेश मूर्ति की स्थापना से ले कर विसर्जन तक क्या-क्या कहानियां सुनाई जाती हैं।


देश भर में गणपति विसर्जन के अवसर पर लाखों भक्तों ने अपने ईष्ट देव भगवान गणेश को विदाई दी। महाराष्ट्र में गणपति पूजा और गणपति विसर्जन एक सामाजिक उत्सव की तरह मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने की थी। इस उत्सव के दौरान गणपति बप्पा मोरया के जयकारे से आसमान गूंजता रहता है। कहते हैं जो पंद्रहवी सदी के संत मोरया गोसावी की भक्ति से जयकारे में बदल गया।


गणपति से जुड़े मोरया नाम की कथा


गणपति बप्पा से जुड़े मोरया नाम के पीछे गणपति जी का मयूरेश्वर स्वरुप माना जाता है। गणेश-पुराण के अनुसार सिंधु नामक दानव के अत्याचार से बचने हेतु देवगणों ने गणपति जी का आह्वान किया। सिंधु का संहार करने के लिए गणेश जी ने मयूर को अपना वाहन चुना और छह भुजाओं वाला अवतार लिया। इस अवतार की पूजा भक्त गणपति बप्पा मोरया के जयकारे के साथ करते हैं।


क्यों किया जाता है गणपति विसर्जन?


गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ इस नारे के साथ देश में जगह-जगह गणपति की मूर्ति विसर्जित की गई। लेकिन क्या आप जानते हैं कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अगले 10 दिन तक गणपति को वेद व्यास जी ने भागवत कथा सुनाई थी। इस कथा को गणपति जी ने अपने दांत से लिखा था।


दस दिन तक लगातार कथा सुनाने के बाद वेद व्यास जी ने जब आंखें खोली तो पाया कि लगातार लिखते-लिखते गणेश जी का तापमान बढ़ गया है। वेद व्यास जी ने फौरन गणेश जी को पास के कुंड में ले जाकर ठंडा किया। इसीलिए भाद्र शुक्ल चतुर्थी को गणेश स्थापना की जाती है। और भाद्र शुक्ल चतुर्दशी यानी अनंत चतुर्दशी को शीतल जल में विसर्जन किया जाता है।


कैसे होता है गणपति विसर्जन?


भगवान गणपति जल तत्व के अधिपति माने जाते हैं। इसी कारण अनंत चतुर्दशी को गणपति पूजा के बाद ही मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। शास्त्रों के मुताबिक मिटटी की बनी गणेश जी की मूर्तियां का जल में विसर्जन अनिवार्य है। इसके लिए घर में ही पवित्र पात्र में गंगाजल की बूंदें और शुद्ध जल मिलाकर मूर्ति का विसर्जन किया जा सकता है। हालांकि बड़ी मूर्तियों को समुद्र और नदी में विसर्जित करने की परंपरा रही है, लेकिन पर्यावरण की चिंता की वजह से अब अलग बड़े टैंक बना कर, उसमें विसर्जन का चलन बढ़ रहा है।


गणपति की पूजा की विधि क्या है?


शास्त्रों के अनुसार गणपति विसर्जन से पहले गणपति की विधिवत पूजा की जानी चाहिए। विसर्जन से पूर्व स्थापित गणपतिजी की मूर्ति का विधिवत षोड़शोपचार पूजन और आरती की जाती है। पूजा विधि के अनुसार पूजा की शुरुआत गणपतिजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाने के साथ होती है। इसके बाद 21 लड्डुओं का भोग लगाने की परंपरा है। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाए जाते हैं, पांच को दान किया जाता है और बाकी लड्डुओं को प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है।


इसके बाद गणेश जी को ॐ वं वक्रतुण्डाय नम: मंत्र के साथ 21 हरे दूर्वा का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। फिर, गणपति की मूर्ति पर केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा अर्पित कर कपूर जलाकर पूजा और आरती की जाती है। फिर मूर्ति को मंत्रोच्चार के साथ मूर्ति विसर्जित कर दिया जाता है।


घर में कैसे स्थापित करें गणपति की मूर्ति?


भक्त विसर्जन के लिए ही नहीं घर के मंदिर में पूजा के लिए भी गणपति की मूर्ति रखते हैं, लेकिन कुछ बातों का ख्याल रखना जरूरी है। शास्त्रों के मुताबिक गणेश प्रतिमा का मुंह दक्षिण दिशा की तरफ नहीं होना चाहिए। ध्यान रखना चाहिए कि विघ्नहर्ता की मूर्ति अथवा चित्र में उनके बाएं हाथ की ओर सूंड घुमी हुई हो। दाएं हाथ की ओर घूमी हुई सूंड वाले गणेश जी हठी होते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि दाएं सूंड वाले गणपति देर से भक्तों पर प्रसन्न होते हैं।


लाल बाग के राजा की कहानी


हर साल सबसे ज्यादा चर्चा मुंबई के गणेश उत्सव की होती है, और कहा जाता है कि मुंबई में भी सबसे ज्यादा श्रद्धालु लाल बाग के राजा के पंडाल में जुटते हैं। दरअसल, श्रद्धालुओं का विश्वास है कि लाल बाग के राजा के दर्शन भर से मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। जानते हैं कि इस विश्वास के पीछे क्या है कहानी।


महाराष्ट्र और खासकर मुंबई में मनाया जाने वाला गणपति उत्सव पूरे देश में प्रसिद्ध है। मुंबई में गणपति उत्सव धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक उत्सव की शक्ल ले चुका है। जगह-जगह गणपति की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। गणपति के भक्त घरों में भी भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणपति की मूर्ति की स्थापना करते हैं और भाद्रपद चतुर्दशी पर बप्पा को विसर्जित कर आते हैं।


मुंबई के अलग-अलग इलाके में गणपति की प्रसिद्ध पूजा समितियां हैं। बॉलीवुड के सितारे भी गणपति उत्सवह में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। खासकर आरके स्टूडियो का गणपति उत्सव लोगों के बीच हमेशा लोकप्रिय रहता है। इस बार भी आर के स्टूडियो में पूरे जोश से गणपति उत्सव मना, विसर्जन के मौके पर तीनों कपूर भाई-ऋषि कपूर, रणधीर कपूर और राजीव कपूर इस बार भी नजर आए।


सोमवार को पूरे दिन लोग सड़क के किनारे पर खड़े हो कर विसर्जन के लिए जा रही गणपति की मूर्ति का दर्शन करते रहे-लेकिन सबसे ज्यादा जोश लाल बाग के राजा के दर्शन के लिए देखा गया। लाल बाग के राजा की गणपति मूर्ति के दर्शन के लिए मुंबई में सबसे ज्यादा भीड़ देखी जाती है। इसकी वजह भी है। दरअसल, गणपति भक्त मानते हैं कि लाल बाग के राजा के दर्शन से मनोकामना पूरी होती है, उन्हें मन्नतों का राजा भी कहा जाता है।


लाल बाग के राजा मन्नतों के राजा कैसे बन गए, इसकी बड़ी ही दिलचस्प कहानी है। लोग बताते हैं कि एक जमाने में लाल बाग के व्यापारियों का कारोबार घाटे में चलता था। व्यापारी चाहते थे कि लालबाग के एक खुली जगह पर भी बाजार लगने लगे। कहते हैं इसी इच्छा के साथ कुछ व्यापारियों ने लाल बाग के राजा के पंडाल की स्थापना की थी। लालबाग के राजा की मूर्ति स्थापित हो जाने के बाद व्यापारियों की मनोकामना पूरी होने में वक्त नहीं लगा।


मनोकामना पूरी होने से कुछ ऐसा ही खास रिश्ता जबलपुर के ग्वारीघाट के श्री सिद्ध गणेश मंदिर से भी जुड़ा है। इस मंदिर में बप्पा के भक्त न सिर्फ पूजा अर्चना करते हैं बल्कि बाकायदा अर्जी लगाते हैं। यहां एक साल में 10 हजार से अधिक अर्जियां गणपति के दरबार में आती हैं।


श्री सिद्ध गणेश मंदिर की कथा


स्थानीय, लोगों का मानना है कि सिद्ध गणेश की कथा रामायण से जुड़ी हुई है। माना जाता है कि सीता स्वंयवर के वक्त सीता जी ने श्रीराम को पति के रूप में पाने के लिए गणेश जी के दरबार में अर्जी लगाई थी। स्वंयवर में श्री राम ने उस शिवधनुष को तोड़ दिया, जिसे बड़े-बड़े महाबलि भी नहीं तोड़ सके थे। सीता जी की मनोकामना पूरी हो गई। ग्वारीघाट में गणपति के भक्त आज भी उनकी मूर्तियां स्थापित करते हैं और अगले बरस फिर से आ की मनोकामना के साथ मूर्ति विसर्जित करते हैं।


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