Wednesday 10 September 2014

कश्मीर: बाढ़ में हजारों गुम, कोई खबर ...




श्रीनगर। जम्मू कश्मीर में आई भयावह बाढ़ में कई लोग गुम हो गए हैं। इन लोगों का 4 सितंबर से ही कोई अता पता नहीं है, ये लोग कहां हैं किसी को जानकारी नहीं है, इनके परिवार को इनका इंतजार है। बाढ़ में ऐसे हजारों लोग फंसे हैं जिनकी किसी को कोई जानकारी नहीं है।


सेना के मुताबिक बाढ़ में अभी भी लाखों लोग फंसे हैं, संचार की खराब स्थिति की वजह से इनसे संपर्क करना मुमकिन नहीं है। यही नहीं अब तो बाढ़ पीड़ित इलाकों में हालात और बदतर होते जा रहे हैं। पढ़ें और देखें सीएनएन-आईबीएन संवाददाता अनुभा भोसले की विशेष रिपोर्ट।


'लोग तरस रहे, खाने के लिए पानी के लिए। आखिर क्यों, मेरी आंखों के सामने तो आसमान लगातार व्यस्त नजर आ रहा था। वायुसेना के हवाई अड्डे पर तो लगातार विमानों की आवाजाही बनी हुई थी। सेना, वायुसेना व्यस्त हैं। लेकिन फिर भी लोग भूखे क्यों हैं, वो रो क्यों रहे हैं, राहत की गुहार लगा रहे हैं आखिर क्यों।


जम्मू-कश्मीर में रहते हुए मुझे 42 घंटे से ज्यादा हो गए थे, और हर पल इस एहसास से दिल डूबता जा रहा था कि देर हो रही है। जम्मू कश्मीर को और और मदद की जरुरत है। मेरी गुजारिश पर सेना ने मुझे और मेरे कैमरामैन राजेश भारद्वाज को लोगों के लिए खाना और पानी ले जा रहे इस चेतक हेलीकॉप्टर में बैठने की जगह दी।


कुछ ही देर में हम श्रीनगर के उपर थे। आसमान से जमीन का नजारा भयानक था। बस्तियां, कालोनी, मुहल्ले, सरकारी दफ्तर, सबकुछ पानी में। ऊपर से ऐसा लग रहा था मानो पूरे श्रीनगर को किसी ने जबरन कीचड़ में डुबा दिया हो। हर तरफ फैले मटमैले पानी ने इस जन्नत को बेनूर, बेबस कर दिया था।


हमें नीचे कुछ लोगों का हुजूम नजर आया। कई किलोमीटर तक फैला हुई गाड़ियां। लोग हेलीकॉप्टर की आवाज सुनते ही उपर देखने लगे। हमें यही खाने का पैकेट गिराना था, ऐसी बेबसी, दिल जोर से रोने का कर रहा था।


कुछ ही मिनटों में हम श्रीनगर के नेहरू हेलीपैड पहुंचे। लोग कैमरा देख कर हाथ हिलाने लगे। कुछ के चेहरे पर हंसी नजर आई। उन्हें उम्मीद लगी शायद कैमरे के जरिए ही उनके अपनों तक उनके सलामती का संदेश पहुंच जाए।


जैसे ही कोई हेलीकॉप्टर नीचे उतरता है भीड़ में हलचल मच जाती है। जैसे जैसे इस भीड़ का हिस्सा बन रही थी दुख की हजारों कहानियां मेरे सामने आ रही थी। अभी तक हंसते मुस्कुराते चेहरों से अचानक दर्द का सैलाब उमड़ पड़ा।


मेरी आंखों के सामने दर्द का वो मंजर था जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। पानी नहीं, खाना नहीं, खुला आसमान, बीमार बच्चे, बुजुर्ग और बीतता हुआ एक-एक दिन, कहां है सरकार।


मैं इस जल्द ही यहां से निकल जाऊंगी और कहानियों की तलाश में। लेकिन ये हजारों लोग यही रह जाएंगे। ना जाने लाइन में बैठे इन लोगों की हेलीकॉप्टर में बैठने की बारी कब आएगी। भूख और प्यास से बिलबिलाते इन लोगों को राहत कब मिलेगी’।


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