Tuesday 9 September 2014

मिस AK47: निगार की मौत से चर्चा में आई ...




नई दिल्ली। निगार...एक नाम...एक चेहरा..। निगार हुसैनी अब इस दुनिया में नहीं है। लेकिन उसकी मौत ने बहुत से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। सोशल मीडिया पर, अखबारों में, टीवी पर उसके चर्चे हैं। वो इराक के कुर्द समुदाय से थी और इराक पर कब्जा करने का सपना देख रहे इस्लामिक स्टेट के आतंकियों से लड़ते हुए मारी गई। उसकी मौत ने सबका ध्यान उसके जैसी सैकड़ों लड़कियों की तरफ भी खींचा है। इराक में जेहाद के नाम पर इंसानियत का कत्ल कर रहे लोगों से मुकाबला करने के लिए एके-47 थामे ये लड़कियां मैदान में उतर चुकी हैं।


आतंकियों से लोहा लेती महिला बटालियन


इस्लामिक स्टेट का इरादा इराक से आगे बढ़कर अरब देशों और फिर धीरे-धीरे एशिया के तमाम देशों तक अपना राज कायम करने का है। इतने खौफनाक इरादों वाले संगठन से मुकाबला करने के लिए एक ऐसी महिला टोली ने कमर कसी, जिसका मकसद ही है...मौत से मुकाबला। ये कुर्द सैनिक हैं और अब इनका चेहरा बनी है 20 साल की निगार हुसैनी। उसका चेहरा देखकर कोई सोच भी नहीं सकता कि 20 साल की ये लड़की एके 47 थामकर दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकियों से मुकाबला करने निकली होगी।


निगार हुसैनी की मौत इराक के किरकुक इलाके में हुई। किरकुक इराक की राजधानी बगदाद से करीब 236 किलोमीटर दूर है। कुर्द किरकुक को इराक की सांस्कृतिक राजधानी मानते हैं। आज से करीब 50 साल पहले किरकुक में कुर्दों की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा थी लेकिन अब इनकी आबादी सिर्फ 20 फीसदी ही रह गई है। बावजूद इसके कुर्द लोगों ने करीब तीन महीने पहले इसे इस्लामिक स्टेट के आतंकियों से छुड़ा लिया और उन्हें वहां से खदेड़ दिया। इस्लामिक स्टेट के लिए ये बहुत बड़ा झटका था लेकिन इसकी सबसे बड़ी वजह निगार हुसैनी जैसी लड़कियां ही रहीं।


कुर्द सेना में शामिल इन लड़कियों में ज्यादातर की उम्र 20 साल के आसपास ही होती है। आमतौर पर इन्हें सीरिया की कुर्दिश डेमोक्रेटिक यूनियन पार्टी का समर्थक माना जाता है। सीरिया में गृहयुद्ध के दौरान भी कुर्द सेना में शामिल लड़ाकों ने गृहयुद्ध में हिस्सा नहीं लिया था। लेकिन साल 2012 में जब कुर्द सेना में इन लड़कियों की इंट्री हुई तो सारे समीकरण बदल गए। इन लड़कियों ने सीरिया और इराक की जमीन को दुनिया के सबसे मुश्किल जंग के मैदान में बदल डाला है।


कुर्द लड़कियों की ये जांबाजी उस दौर में सामने आ रही है जब इराक में इस्लामिक स्टेट के लड़कों की क्रूरता भी दुनिया देख रही है। इस्लामिक स्टेट के लड़ाके सैकड़ों लड़कियों का अपहरण कर चुके हैं। उन्हें देह व्यापार में उतार चुके हैं और उनसे टकराने के लिए ये कुर्द लड़कियां अपनी एके 47 रायफल के साथ कंधे से कंधा मिला रही हैं। बड़ी बात ये कि जंग के मैदान में लड़कियों की ये टुकड़ी सबसे आगे रहती है। उस वक्त इनके चेहरे पर शिकन का जरा सा भाव तक नहीं दिखता। यही पश्मीरा बटालियन की खूबी है और पहचान भी।


इन लड़कियों को हर रोज कुर्दिश आर्मी स्पेशल फोर्स के कमांडरों के जरिए ट्रेनिंग दी जाती है और ये हाल-फिलहाल में नहीं हुआ बल्कि ये सिलसिला पिछले 18 साल से जारी है। ये भी दिलचस्प है कि इस बटालियन में तैनात ज्यादातर महिलाओं के परिवार वालों को ये पता नहीं होता कि वो सेना में किस तरह की बटालियन में काम कर रही हैं। जब वो छुट्टी पर घर लौटती हैं तो सामान्य महिलाओं की तरह बर्ताव करती हैं। किसी को ऐहसास नहीं होने देतीं कि देश के लिए कुर्बान होने के जज्बा उन्हें कितने खुफिया मिशन पर काम कराता है।


फौज की इस बटालियन में बने रहने के लिए ज्यादातर लड़कियों ने तो शादी का इरादा भी छोड़ दिया है। अगर शादी करती भी हैं तो दुश्मन से मुकाबला करते वक्त इस बात की परवाह नहीं करतीं कि पीछे परिवार है। अपने दो दशक के इतिहास में अब तक ऐसा नहीं हुआ था कि महिला बटालियन की किसी फौजी को अपनी जान गंवानी पड़ी हो लेकिन पहली बार निगार हुसैनी इस्लामिक स्टेट के आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हुई है।


सद्दाम को पछाड़ने में निभाई थी अहम भूमिका


सद्दाम हुसैन के शासन के दौरान कुर्दों की स्थिति बहुत खराब थी। कुर्द चाहते थे कि इराक के उत्तरी इलाके में उन्हें स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दे दी जाए। लेकिन सद्दाम ने हमेशा उनकी मांग ठुकरा दी। यही नहीं सद्दाम के शासन के दौरान कुर्दों पर केमिकल हमले भी हुए। अपने 5 हजार से ज्यादा लोगों की मौत के बाद कुर्दों ने महिला बटालियन बनाकर सद्दाम की फौज का मुकाबला किया।


90 के दशक में एक वक्त ऐसा भी आया था जब कुर्द पूरी तरह से किनारे कर दिए गए थे। इसी दौर में अमेरिका ने सद्दाम हुसैन का तख्तापलट करने के लिए कुर्दों की मदद ली। साल 2003 में सद्दाम को बेदखल करने के बाद से कुर्द महिला बटालियन शांत थी लेकिन अब इस्लामिक स्टेट की क्रूरता के आगे उसने कमर कस ली है। ये सही है कि इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों के मुकाबले उनके पास हथियारों की कमी है, पैसे की कमी है लेकिन हौसले कहीं से भी कम नहीं हैं। अब इस्लामिक स्टेट से मुकाबला करने के लिए अमेरिका ने सीधे कुर्दों की मदद करनी शुरू कर दी है। फ्रांस भी कुर्द लड़ाकों को सीधे हथियार मुहैया करा रहा है। इसी का नतीजा है कि इराक में इस्लामिक स्टेट को पीछे धकेलने में थोड़ी कामयाबी हासिल हुई है। कुर्द लड़ाकों के हमला करने का तरीका भी अनोखा है। छोटी टुकड़ियों में हमला करो, हर वक्त अपनी जगह बदलते रहो और जो भी हमला करो तेजी से करो।


महिला के हाथों मौत से डरते हैं आतंकी


कुर्द समुदाय दुनिया के उन चुनिंदा मुस्लिमों में से एक है जो अपनी लड़कियों को हथियार उठाने की इजाजत देता है, जंग के मैदान पर भेजता है। जरूरत पड़ने पर पहले उन्हें सबसे आगे भी भेजा जाता है। इसलिए इन लड़कियों के आगे एक बार दुश्मन आ जाए तो जीत अमूनन इन्हीं की होती है। आईएसएस से मुकाबला करने के लिए जंग के मैदान में उतरी कुर्द महिला बटालियन से आईएसएस के लड़ाके भी डरते हैं, घबराते हैं। वो इसलिए क्योंकि आईएसएस के लड़ाकों को लगता है कि अगर वो इन महिला फौजियों के हाथों मारे गए तो जेहाद के खिलाफ उनकी लड़ाई बेकार चली जाएगी और उन्हें जन्नत नसीब नहीं होगी।


इन महिला फौजियों को तनख्वाह अपने पुरुष साथियों जितनी ही मिलती है, करीब एक हजार डॉलर महीना। जबकि इराकी सेना में उनके बराबर काम कर रहे सैनिकों को उनसे दोगुनी तनख्वाह मिलती है। लेकिन ये पश्मर्गा लड़ाके अपने समुदाय का भरोसा नहीं तोड़ सकते। उनका कहना है कि वो पैसे के लिए नहीं, अपने परिवार, अपने समुदाय के लिए लड़ती हैं। इन लड़कियों की मानें तो पिछले कई महीनों से उन्हें तनख्वाह तक नहीं मिली है लेकिन वो फिर भी जंग के मैदान पर डटी हुई हैं।


कुर्द लड़ाकों में आपस में भी कई गुट हैं। अलग देश के लिए उनकी मांग दशकों पुरानी है। जरूरत के हिसाब से अमेरिका भी इन लोगों, इन लड़कियों का इस्तेमाल करता रहा है। सद्दाम हुसैन से लेकर ओसामा बिन लादेन तक को रास्ते से हटाने में अमेरिका ने कुर्दों की मदद ली है। अब एक बार फिर अमेरिका को इनकी जरूरत है और उसी के मुताबिक समीकरण भी बदल रहे हैं।


आतंकी संगठन आईएस में भी हैं महिलाएं


ऐसा नहीं है कि आतंकी संगठन आईएस में महिलाएं नहीं हैं। इस ग्रुप में महिलाओं को लेकर कई रिपोर्ट सामने आ चुकी हैं। कई महिलाओं के सोशल साइट्स के स्टेटस से भी इसका पता चला है। ब्रिटेन, फ्रांस, स्कॉटलैंड की लड़कियों ने आईएस ज्वाइन किया है। खबरों के मुताबिक आईएस में महिलाओं का एक अलग विंग है। महिलाएं भी मर्दों के साथ लड़ाई में शरीक होती हैं। कुछ खबरों के मुताबिक आईएस में एक महिला ब्रिगेड का नाम अल खनसा है। इसमें 60 से ज्यादा महिलाएं हैं। ये आंकड़ा इससे और ज्यादा हो सकता है क्योंकि ये कुछ महीने पुरानी रिपोर्ट के आधार पर है।


एक ताजा रिपोर्ट में ग्लासगो की एक छात्रा के आईएस में शामिल होने की खबर आई है। इस लड़की ने अपना घर बार छोड़ दिया और सीरिया पहुंचकर आईएस के लड़ाके से शादी कर ली और आईएस के लिए काम करने लगी। अक्सा नाम की ये महिला बिना बताए घर से आ गई थी और सीरिया की सीमा से उसने घर वालों को फोन कर बताया कि वो शहीद होने के लिए आई है और उनसे फैसले के दिन मिलेगी। कुछ रोज पहले अक्सा की मां ने टीवी चैनलों के जरिए अपनी बेटी से काफी इमोशनल अपील की है कि वो घर लौट आए।


एक स्टडी से सामने आया है कि पश्चिमी देशों की सैकड़ों महिलाएं आईएस के साथ जुड़ी हैं और इनकी तादाद बढ़ती जा रही है। इसमें ब्रिटेन और फ्रांस की सबसे ज्यादा महिलाएं हैं। कुछ अमेरिकी और ब्रिटिश रिपोर्टों के मुताबिक सामने आया एक और आंकड़ा चौंकाने वाला है। आईएस में शामिल होने वालों में 5 हजार से 10 हजार अकेले ब्रिटिश नागरिक हैं जो कि इराक और सीरिया में जंग लड़ रहे हैं।


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