Wednesday, 6 August 2014

नाबालिगों को सख्त सजा पर एमनेस्टी ...




नई दिल्ली। एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने बुधवार को कहा कि भारत सरकार को कानून में संशोधन का वह प्रस्ताव खारिज कर देना चाहिए, जिसमें गंभीर आपराधिक मामले में बच्चों को वयस्कों के रूप में देखने की बात कही गई है।


भारत में एमनेस्टी के प्रमुख शशि कुमार वेलाठ ने कहा कि बच्चे कभी-कभी हिंसा के रूप में वयस्कों के जैसे अपराध को अंजाम दे सकते हैं। अपराध चाहे बच्चे ने किया हो या व्यस्क ने, पीड़ित या उसके परिवार का गुस्सा और दर्द समान हो सकता है। लेकिन बच्चों की अपरिपक्वता की वजह से उनके द्वारा किया जाने वाला 'वयस्क' अपराध भी अलग होता है। इसलिए उन्हें दी जाने वाली सजा में इस अंतर को ध्यान में रखा जाना चाहिए। साथ ही यह ध्यान में रखना चाहिए कि बच्चों में सुधार की गुंजाइश होती है। उन्हें सजा देने के क्रम में उनके किशोरावस्था के मनोविज्ञान को भी समझा जाना चाहिए।


गौरतलब है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने जून में जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम, 2000 को निरस्त करने की बात कही थी। इस अधिनियम के स्थान पर दूसरा विधेयक जल्द ही सदन में लाए जाने की संभावना है।


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