Saturday 30 August 2014

फिल्म समीक्षा: बोरिंग फिल्म है ...




मुंबई। 2 घंटे 20 मिनट गुजारने के लिए आप कई तरीके सोच सकते हैं, जैसे टीवी पर कोई शो देखना, चेतन भगत की किताब पढ़ना या फोन पर कैंडी क्रश खेलना कुछ भी, पर इमरान हाशमी की नई फिल्म ‘राजा नटवरलाल’ नहीं। ऐसा नहीं है कि ये साल की सबसे बकवास फिल्म है, लेकिन इस रोचक स्टोरी को बहुत ही प्रिडिक्टब्ली बताई गई है। चंद हजार रुपयों के लिए लोगों को बेवकूफ बनाकर थक चुका राजा यानी इमरान हाशमी अब कोई बड़ा हाथ मारना चाहता है इस उम्मीद में कि वो अपनी बार डांसर गर्लफ्रेंड जिया यानी पाकिस्तानी एक्ट्रेस हुमैमा के साथ नई जिंदगी शुरू कर सके।


पर ये प्लान उसी पर उल्टा पड़ जाता है, जब सके पार्टनर राघव यानी दीपक तिजोरी की हत्या हो जाती है। और राजा गुंडों और पुलिस दोनों की वांटेड लिस्ट में है। कोई चारा नहीं होते हुए वो योगी नाम के एक मंझे बदमाश यानी परेश रावल की मदद लेता है, जिससे वो अपने दोस्त के हत्यारे एक अरबपति केके मेनन को लूट कर अपना बदला पूरा कर सके।


‘स्पेशल-26’, ‘खोसला का घोसला’, से कई प्लॉट उधार लेते हुए डायरेक्टर कुनाल देशमुख और उनके राइटर अपने नायक को ऐसे धोखे में उलझाते हैं। ये और थ्रिलिंग लगता अगर राजा और योगी आपको ये यकीन दिला पाते कि वो इतने स्मार्ट हो कि वो इस धोखे को कर सकते हैं। ये उन चंद फिल्मों में से है जो हर मोड़ पर ट्विस्ट देती है। पर इनमें ना कोई सच्चाई नजर आती है और ना कोई सरप्राइज। ‘राजा नटरवाल’ ना तो एवरेज इमरान हाशमी फिल्म की तरह इंटरटेनिंग है और ना ही उतनी क्लेवर जो आपको बांधे रखे बल्कि ये फिल्म आपको पूरी तरह थका देगी। मैं इस फिल्म को 5 में से 2 स्टार देता हूं।


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